ये दबदबा ये हुकूमत ये नशा ए दौलत
किरायेदार हैं सब घर बदलते रहते हैं
१;हतकांत का किला:महाभारत काल में इस क्षेत्र को गहन बन अथवा दुर्गम पथ कहा जाता था इस किले का चंवल के बीहड़ में होने के कारण सामरिक महत्व था यह किला भदोरिया शासकों का प्रधान मुख्यालय था,मुबारक शाह को अपने शाशनकाल में 1427,28 में हतकान्त के भदौरिया हिन्दू शासकों के विरोध का सामना करना पड़ा इसलिए 1429,30 में मुबारकशाह को पुनः हिन्दू शासन के दमन हेतु आना पड़ा पनः भयंकर संग्राम हुआ तारीखे मुबारक शाही से ज्ञात होता है युद्ध के बाद हिन्दू भदौरिया शासक सुरक्षार्थ जलाहार की पहाड़ियों की और चला गया नंदगवां घाट की और चलें पार करते ही हतकान्त किले की सीमा शरू हो जायेगी जैनियों का भी यहां विहंगम मंदिर रहा है इस रियासत की कुल आबादी 29 हजार थी यहां कई दर्जन होलियां एक साथ जलती थीं और यहीं बह थाना था जहां डाकू पंचम सिह ने 1909 में पूरे थाने के 21 सिपाहियों की हत्या कर हथियार लुटे थे फिर थाना जेतपुर बना उसके बाद ही यह रियासत वीरान हो गई इसके खण्डरों को देखकर इस रियासत की संपन्नता का अंदाजा लग जायेगा ।
२:~कचौरा का किला::यह किला किस राजवंश का था प्रमाणिक रूप से स्पस्ट नहीं है,बाह से कचौरा जाने वाले रास्ते पर यमुना नदी के किनारे बना किला जहां शिलालेख के आभाव इस किले की निर्माण संवंधी प्रमाणिक जानकारी का आभाव हे यह किला राजा महासिंह ने आने चोंथे कुंवर अजब सिह को राव की उपाधि कचौरा का किला और 15 गांव की जागीर दी थी कचौरा का किला करीव 40 फिट की ऊंचाई पर स्थित था,आज बहः इसके भवनावशेष देखे जा सकते हैं भदौरिया राजाओं दृरा यमुना नदी के तट पर वनाया शिव मंदिर आज भी है कचोराघाट व्यापारक केंद्र था जो सोने चांदी के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था आज भी यहां खुदाई में सोने वनाने के औजार और सोना वना मिल जाता है इसी कारण इस स्थान को कंचनपुरी भी कहा जाता था
यमुना नदी के दूसरे किनारे नारंगी घाट के नाम से प्रसिद्ध ग्राम है जहां नावों दृरा दूर दूर से व्यापार किया जाता था नोरंगी घाट इतिहास प्रसिद्ध स्थान है जहां कई राजाओं तथा नवावों की सेनाऐं युद्ध के लिए नदी पार करतीं थीं
३:~नोगांव का किला::राजा बदन सिह ने अपने पुत्र भगवत सिह को 12 गांव की जागीर,राजा प्रताप सिंह ने
नोगांव निवास किया और गढ़ी को विस्तारित कर किले का रूप दे दिया इसमें कई छरोखे और बुर्ज बनवाकर भव्य रूप प्रदान किया तब से उनके उत्तराधिकारी इस किले में निरन्तर निवास करते रहे जब तक की भदावर हॉउस में निवास प्रारंभ नहीं किया वर्तमान में भदौरिया राजा अरिदमन सिह जी नोगांव आते रहते हैं यहां प्रतिवर्ष दशहरा उत्सव भी संपन्न होता है किले के पूर्व की और भदौरिया राजाओं के स्मारक बने हैं सभी मूर्तियां सफेद चमकीले संगमरमर से निर्मित है यही किला भदावर राजबंश की अंतिम राजधानी था ।
४::पिनाहट किला~फिल्म यतीम, दिलफिरे और कीट पतंगा देखने वाले लोगों ने आगरा के पिनाहट के किले के कुछ सीन भी जरुर देखे होंगे। तीन बड़ी और न जाने कितनी ही टेलीफिल्मों में नजर आने वाला पिनाहट का यह प्राचीन किला मेवाती शासक ने 300 साल पूर्व बनाया था। किले को हातिया मेव को हराकर राजा भदावर ने जीत लिया। तभी से यह प्राचीन किला भदावर राज घराने की संपत्ति है। 300 साल पूर्व के इस किले में फिल्म यतीम, दिलफिरे और कीट पतंगा जैसी बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इसके साथ ही कई टेलीफिल्म की शूटिंग भी समय-समय पर किले में होती रही हैं लेकिन अब यह विल्कुल जीर्ण शीर्ण अवस्था में लोगों के शोंच का स्थान वन गया है ।
किरायेदार हैं सब घर बदलते रहते हैं
१;हतकांत का किला:महाभारत काल में इस क्षेत्र को गहन बन अथवा दुर्गम पथ कहा जाता था इस किले का चंवल के बीहड़ में होने के कारण सामरिक महत्व था यह किला भदोरिया शासकों का प्रधान मुख्यालय था,मुबारक शाह को अपने शाशनकाल में 1427,28 में हतकान्त के भदौरिया हिन्दू शासकों के विरोध का सामना करना पड़ा इसलिए 1429,30 में मुबारकशाह को पुनः हिन्दू शासन के दमन हेतु आना पड़ा पनः भयंकर संग्राम हुआ तारीखे मुबारक शाही से ज्ञात होता है युद्ध के बाद हिन्दू भदौरिया शासक सुरक्षार्थ जलाहार की पहाड़ियों की और चला गया नंदगवां घाट की और चलें पार करते ही हतकान्त किले की सीमा शरू हो जायेगी जैनियों का भी यहां विहंगम मंदिर रहा है इस रियासत की कुल आबादी 29 हजार थी यहां कई दर्जन होलियां एक साथ जलती थीं और यहीं बह थाना था जहां डाकू पंचम सिह ने 1909 में पूरे थाने के 21 सिपाहियों की हत्या कर हथियार लुटे थे फिर थाना जेतपुर बना उसके बाद ही यह रियासत वीरान हो गई इसके खण्डरों को देखकर इस रियासत की संपन्नता का अंदाजा लग जायेगा ।
२:~कचौरा का किला::यह किला किस राजवंश का था प्रमाणिक रूप से स्पस्ट नहीं है,बाह से कचौरा जाने वाले रास्ते पर यमुना नदी के किनारे बना किला जहां शिलालेख के आभाव इस किले की निर्माण संवंधी प्रमाणिक जानकारी का आभाव हे यह किला राजा महासिंह ने आने चोंथे कुंवर अजब सिह को राव की उपाधि कचौरा का किला और 15 गांव की जागीर दी थी कचौरा का किला करीव 40 फिट की ऊंचाई पर स्थित था,आज बहः इसके भवनावशेष देखे जा सकते हैं भदौरिया राजाओं दृरा यमुना नदी के तट पर वनाया शिव मंदिर आज भी है कचोराघाट व्यापारक केंद्र था जो सोने चांदी के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था आज भी यहां खुदाई में सोने वनाने के औजार और सोना वना मिल जाता है इसी कारण इस स्थान को कंचनपुरी भी कहा जाता था
यमुना नदी के दूसरे किनारे नारंगी घाट के नाम से प्रसिद्ध ग्राम है जहां नावों दृरा दूर दूर से व्यापार किया जाता था नोरंगी घाट इतिहास प्रसिद्ध स्थान है जहां कई राजाओं तथा नवावों की सेनाऐं युद्ध के लिए नदी पार करतीं थीं
३:~नोगांव का किला::राजा बदन सिह ने अपने पुत्र भगवत सिह को 12 गांव की जागीर,राजा प्रताप सिंह ने
नोगांव निवास किया और गढ़ी को विस्तारित कर किले का रूप दे दिया इसमें कई छरोखे और बुर्ज बनवाकर भव्य रूप प्रदान किया तब से उनके उत्तराधिकारी इस किले में निरन्तर निवास करते रहे जब तक की भदावर हॉउस में निवास प्रारंभ नहीं किया वर्तमान में भदौरिया राजा अरिदमन सिह जी नोगांव आते रहते हैं यहां प्रतिवर्ष दशहरा उत्सव भी संपन्न होता है किले के पूर्व की और भदौरिया राजाओं के स्मारक बने हैं सभी मूर्तियां सफेद चमकीले संगमरमर से निर्मित है यही किला भदावर राजबंश की अंतिम राजधानी था ।
४::पिनाहट किला~फिल्म यतीम, दिलफिरे और कीट पतंगा देखने वाले लोगों ने आगरा के पिनाहट के किले के कुछ सीन भी जरुर देखे होंगे। तीन बड़ी और न जाने कितनी ही टेलीफिल्मों में नजर आने वाला पिनाहट का यह प्राचीन किला मेवाती शासक ने 300 साल पूर्व बनाया था। किले को हातिया मेव को हराकर राजा भदावर ने जीत लिया। तभी से यह प्राचीन किला भदावर राज घराने की संपत्ति है। 300 साल पूर्व के इस किले में फिल्म यतीम, दिलफिरे और कीट पतंगा जैसी बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इसके साथ ही कई टेलीफिल्म की शूटिंग भी समय-समय पर किले में होती रही हैं लेकिन अब यह विल्कुल जीर्ण शीर्ण अवस्था में लोगों के शोंच का स्थान वन गया है ।
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